वास्तव में अगर देखा जाए तो सरकार का यह कदम सोचने पर मजबूर करता है कि क्या यह वाकई उच्चतर वित्तीय समावेशन के लिए उठाया गया कदम है या फिर यह कॉरपोरेट घरानों को संतुष्ट करने की रणनीति है?
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उच्चतर वित्तीय समावेशन के लिए आरबीआई द्वारा कुछ सटीक कार्रवाई की उम्मीद की जा रही है, लेकिन वह एक बार विफल हो चुकी रणनीति को ही दोबारा अपना रहा है, जो न सिर्फ हैरान करती है बल्कि वृहद लक्ष्य का मार्ग भी प्रशस्त नहीं करती.
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अनुच्छेद 25-एन के अंतर्गत छंटनी के लिए सरकार की पूर्वानुमति की शर्त को उन मामलों में हटा दिया जाएगा जहां छंटनी किए गए श्रमिकों को वास्तविक रूप में उच्चतर वित्तीय भुगतान किया गया है अर्थात् विद्यमान छंटनी प्रतिपूर्ति से तीन गुना (उन मामलों में चार गुना जहां “सबसे बाद में आओ-सबसे पहले जाओ” के सिद्धांत का पालन नहीं किया जाता है)।